इन्द्र कुमार मेघवाल कविता
प्यास ही तो लगी थी , जो घड़ा की तरफ चल दिया |
बस छुआ ही था उसने घड़ा को , जो थप्पड़ उस पर जड़ दिया ,
मारा -पीटा जान -बूझकर क्यों कि ,उसकी जाति पिछड़ी थी |
दर्द बहुत हुआ होगा ,सोचा क्यों छुआ हमने इस घड़े को,
क्या पता था उस नन्ही जान को , यह कितना बड़ा अपराध है |
मार मार कर मार दिया इस नन्ही जान को ,
बचा न पाए भगवान भी , उसका क्या कसूर था |
सजा जो मिली मौत की , पानी उसका कारन थी या था जातिवाद ,
बता न पाए भगवान भी ,उसने क्या कसूर किया,
क्या खता थी उस बच्चे की, जो घड़ा को उसने छू दिया |
क्या पता था उस बच्चे को ,उसका सब कुछ निस्चय होता है इस समाज से ,
समाज में जहर जातिवाद का ,जिसने है घोल दिया
आजादी के 75 साल बाद भी ,जातिवाद न खत्म हुआ |
कितने मासूमों की जान गईं , कितनों का घर बर्बाद हुआ
सत्ता के गलियारों में ,इसका है कोई मोल नहीं ,
अपनी राजनीती चमका रहें ,लोगो के लाशों पर ,
खत्म करो इस जहर को ,वरना पड़ेगा पछताना ,
जिस दिन लोग जग गए निंदो से ,खत्म हो जाएगा यह खेल ||
बहुत -बहुत धन्यवाद् ||