दिल्ली दंगों के ऊपर हमारी एक मार्मिक कविता
क्या भूलूं क्या याद करूं
जो अपनों ने अपनों को ही मारा
या जो अपनों ने अपनों को दिया सहारा।
साथ मनाते थे ,ईद और दीवाली
आज निकाल रहे एक दूसरे का दिवाला।
कर रहे कत्लेआम एक दूसरे का
भूल गए कृतज्ञता एक दूसरे का।
घर फूंके, दूकानें जलाई,
मचाया कोहराम सड़कों पे
जैसे लगता है लोग भूल गए
आपस के प्यार और भाईचारे को।
अपने ही अपनों की
कैसे करेंगे नुकसान की भरपाई
सोचकर रूह कांप जाती है ,अपनी भाई।
कब समझेंगे ,मालूम नहीं
इन धर्म के ठेकेदारों की चाल
गर मरा होता इनका अपना
गर फुके होते इनके अपने घर
तब जाके समझ में आती
इन लोगों का दर्द।
अगर पडो़गे इनके चक्कर में
हो जाओगे बर्बाद
अब तो हो पढ़े-लिखे
अब समझो इनकी चाल।
रोजी-रोटी पर दो ध्यान
छोड़ो इस धर्म की चाल
वो धर्म भी क्या धर्म है
जो मानवता ना सिखा सकी।
क्या रखा है हिंदू मुस्लिम में,
बनो तुम एक नेक इंसान।
क्या भूलूं क्या याद करूं
जो अपनों ने अपनों को ही मारा
या जो अपनों ने अपनों को दिया सहारा।
साथ मनाते थे ,ईद और दीवाली
आज निकाल रहे एक दूसरे का दिवाला।
कर रहे कत्लेआम एक दूसरे का
भूल गए कृतज्ञता एक दूसरे का।
घर फूंके, दूकानें जलाई,
मचाया कोहराम सड़कों पे
जैसे लगता है लोग भूल गए
आपस के प्यार और भाईचारे को।
अपने ही अपनों की
कैसे करेंगे नुकसान की भरपाई
सोचकर रूह कांप जाती है ,अपनी भाई।
कब समझेंगे ,मालूम नहीं
इन धर्म के ठेकेदारों की चाल
गर मरा होता इनका अपना
गर फुके होते इनके अपने घर
तब जाके समझ में आती
इन लोगों का दर्द।
अगर पडो़गे इनके चक्कर में
हो जाओगे बर्बाद
अब तो हो पढ़े-लिखे
अब समझो इनकी चाल।
रोजी-रोटी पर दो ध्यान
छोड़ो इस धर्म की चाल
वो धर्म भी क्या धर्म है
जो मानवता ना सिखा सकी।
क्या रखा है हिंदू मुस्लिम में,
बनो तुम एक नेक इंसान।
Cleaver people use innocent civilians in the name of religion,cast ,creed.etc.
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